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अस्य॒ हि स्वय॑शस्तरं सवि॒तुः कच्च॒न प्रि॒यम्। न मि॒नन्ति॑ स्व॒राज्य॑म् ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asya hi svayaśastaraṁ savituḥ kac cana priyam | na minanti svarājyam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अस्य॑। हि। स्वय॑शःऽतरम्। स॒वि॒तुः। कत्। च॒न। प्रि॒यम्। न। मि॒नन्ति॑। स्व॒ऽराज्य॑म् ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:82» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:25» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (हि) निश्चय से (अस्य) इस परमात्मा (सवितुः) जगदीश्वर का (स्वयशस्तरम्) अपना यश जिसका वह अतिशयित (प्रियम्) अत्यन्त प्रिय (स्वराज्यम्) अपने राज्य को (कत्, चन) कभी (न) नहीं (मिनन्ति) नष्ट करते हैं, वे धार्म्मिक होते हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो परमात्मा के बीच अज्ञान का नाश करते हैं, वे यशस्वी होकर राज्य को प्राप्त होते हैं ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

ये ह्यस्य सवितुरीश्वरस्य स्वयशस्तरं प्रियं स्वराज्यं कच्चन न मिनन्ति ते धार्मिका जायन्ते ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्य) परमात्मनः (हि) (स्वयशस्तरम्) स्वकीयं यशं कीर्त्तिर्यस्य तदतिशयितम् (सवितुः) जगदीश्वरस्य (कत्) कदा (चन) अपि (प्रियम्) (न) निषेधे (मिनन्ति) हिंसन्ति (स्वराज्यम्) स्वकीयं राष्ट्रम् ॥२॥
भावार्थभाषाः - ये परमात्माज्ञानं हिंसन्ति ते यशस्विनो भूत्वा राज्यमाप्नुवन्ति ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे परमेश्वराच्या साह्याने अज्ञानाचा नाश करतात ते यशस्वी होऊन राज्य करतात. ॥ २ ॥